जीवन एक फिल्म है या फिल्म ही एक जीवन है की एक अनोखी मिसाल निर्माता, निर्देशक ज्ञानचंद शाह। जो फिल्म नगरी का एक बेताज बादशाह माना जाता है दया, धर्म, मानवता की लोग उसे मिसाल समझते हैं। चन्दनसिंह का लड़का फीस के कारण काॅलिज नहीं जा सकता तो फीस सेठजी की तरफ से हाजीर है। सेठ जी का टेकनिशयन जोसेफ ये अच्छे तरीके से जानता है के उसकी पत्नी के इलाज का सारा रुपया सेठजी देने को तैयार है सेठजी का लालची सेक्रेटरी गिरधारी - जो हजुरी में अपना समय बिताता है। लोगो का कहना है के कामयाबी और इज्जत एक आत्मा बनकर ज्ञानचन्द के शरीर में प्रवेश कर दी गई है। और एक दिन बेरहम वक्त सेठजी से उनका वक्त छीन लेता है। बीवी, दोस्त, पार्टनर, व्यापारी सभी मुंह मोड़ लेते हैं। जमीन, घर, गाड़ी सबही को ग्रिवी रख कर वो समय के भँवर से निकलने की पूरी कोशिश करने के बावहुद हालात के थपेड़े खता जेल पहुँच जाता है।
ज्ञानचन्द के बंगले से कुछ ही दूर एक झोपड़े की काली रात समय का अकार लिए ज्ञानचन्द को देखकर मुस्कुरा रही थी। ज्ञानचन्द का ये झोपड़ा बम्बई की झोपड़ीपट्टी धरावी में बसा है लेकिन अब भी ज्ञानचन्द का फिल्मी सपना उसकी आँखों में जिन्दा है। और वो अपनी हर सांस के साथ समय के परिवर्तन से लड़ने का साहस बटोर कर ड्राइव इनका दरबान बन जाता है। और एक दिन इसी ड्राइव इन में उसका पुराना सेक्रेटरी गिरधारी सेठ बन कर उसकी बेइज्जती करता है। गिरधारी की गाड़ी में बैठा एक नौजवान रौनी ज्ञानचन्द की बातों से काफी प्रभावित होता है। रौनी दूसरे दिन अपनी दोस्त सीमा को ज्ञानचन्द के बारे में बताता है। उन दिनों सिमा एक विदेशी फिल्म निर्माता के पास इन्टरपरेटर की नौकरी कर रही थी। सिमा की बातों को सुनकर विदेशी ज्ञानचन्द का इन्टरव्यू करना चाहता है।
ज्ञानचन्द अपनी यादों की किताब को खोलकर उनके सामने रख देता है। सभी खो जाते हैं इन्टरव्यू के बाद विदेशी ज्ञानचन्द को 50,000 पचास हजार रुपये देता है। ज्ञानचन्द एकबार फीर समय को अपनी ओर आते देखता है। वो एक बार फिर फिल्म बनाने का फैसला कर लेता है। एक लम्बा चैड़ा लड़का जिसे सारे लोग हिरो के नाम से पुकारते थे वो उसे फिल्म के पर्दे का हिरो बनाने का फैसला कर लेता है। झोपड़े की छबीली चान्दनी को भी साथ ले लेता है। रौनी और सिमा को भी फिल्म में काम करने को कहता है। चारों को बड़ी कठिनाइयों के साथ तैयार करता है। फिल्म शुरू हो जाती है उसके पुराने टेकनिशयन उसको सहायता के लिए उसके पास चले आते है। फिल्म काफी मेहन्त के बाद पूरी बन जाती है। ज्ञानचन्द अपने फिल्म के डब्बे को लेकर हर आफिस का दरवाजा खट खटाता है। जो अपना नाम और जगह खो चुका था डिस्ट्रीब्यूटर उसकी फिल्म को लेना दरकनार देखने से भी इन्कार देते है। ज्ञानचन्द और उसके नये कलाकारों की मेहन्त एक बन्द डब्बे में दम तोड़ती हुई फिल्म ज्ञानचन्द के भाग पर रो रही थी।
ज्ञानचन्द की अरमानों और ख्वाबों में बसने वाली उम्मीद एक अन्धेरे में डूबती हुई नजर आई। अब ज्ञानचन्द के सामने सिर्फ एक ही रास्ता था "आत्महत्या" वो जैसे ही अपनी फिल्म और अपने आपको मिटाने की कोशिश कर रहा था ओ अचानक हिरो रौनी और सिमा आ कर ज्ञानचन्द को रोक लेते हैं
समय एक बार फीर ज्ञानचन्द के करीब मन्डराने लगता है। उसकी बिवी वापस आ जाती है। और उसका पुराना पार्टनर देसाई एक बार फीर दोस्ती का हाथ बढ़ाता है। उसकी फिल्म को रिलीज करने का वचन देता है।
बम्बई के एक थिऐटर रौक्सी में फिल्म रिलीज होती है। सारे शहर में एक ही चर्चा होती है। "फिल्म ही फिल्म"। ज्ञानचन्द एक बार फीर समय से लड़कर अपने समय को वापस छीन लेता है। चारों तरफ ज्ञानचन्द और उसके नये कलाकार स्टार बनकर छा जाते हैं।
ज्ञानचन्द शाह प्राण, हीरो फुरकान, रौनी बिपीन, गिरधारी रमेश देव, सीमा सोनीया, चान्दनी बिना।
(From the official press booklet)